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AAKHIR NAARI HI KIYO..................................

आखिर नारी ही क्यों .....................करे त्यौहार ?
                                                                     आलेख: मोहम्मद तस्लीम उल हक
   यू तो पूरा साल त्योहारों से भरा है / तीन सौ पैसठ दिनों में हम इतने ही त्यौहार  हम मनाते भी हैं / अर्थात हर दिन एक त्यौहार और एक उत्सव / देखा जाय तो इनसे विशेषकर महिलाएं ही जुडी है/ सावन के आते ही पुरे कार्तिक माह तक उत्सवों की श्रृंखला शुरू हो जाता है/ 
 त्योहारों का श्रृंखला:-तीज, नाग पंचमी ,भैया पंचमी, रक्षा बंधन, कृष्ण अष्टमी , राधा अष्टमी,नवरात्र, करवा चौथ , अहोई , अष्टमी,दीपावली,यम  द्वितीया,भैया दूज ,अनंत चतुर्दसी,गणेश चतुर्थी,संकट चतुर्थी,आदि कई त्यौहार है/   इन त्योहारों को केवल महिलाये ,भाईओं,पति,और पुत्रो के लिए मनाती आ रही है/ हथेली पर चावल के दाने ,थाली में मिटटी के गणेश, पकवान के साथ पूजा कर चन्द्र दर्शन कर एक राजा और रानी की कहानी सुन व्रत का तर्पण कर ही सुहागिन महिलाये मुह जुठ्लाती है/ ये परम्पराएँ न जाने कितनी ही पीडियों से चली आ रही है/ 
   क्या ये अश्मिता का सवाल है:-    नारी अपनी अश्मिता के प्रश्नों को ले आज समाज के सामने खड़ी है/क्यों?केवल माँ पुत्रो के लिए,पुत्रियों के लिए नहीं ;बहन क्यों? भाई के लिए और पत्नी क्यों?पति के लिए ही व्रत या त्यौहार या उपवास करे/ क्या इन त्योहारों के बहाने नारी को दोयेम दर्जे का प्राणी सिध्ह नही किया गया है/ पुरुष उसके बिना अधूरा नही,वह पुरुष के बिना अधूरी है/ अपने जीवन मूल्यों की बलि देकर उसे बचाना है/ यह पाठ परिवार में बचपन से ही पदाया जाता है/ 
     पृष्ठभूमि त्योहारों की:-ऐसी मान्यता है कि तीन काल वीर गाथा ,भक्ति काल और रीतिकाल में किसी त्यौहार का उल्लेख नही मिला है/ वीर काल में माँ पुत्रो को ,बहन भाई को,तथा पत्नी पति को तिलक लगाकर आरती उतारती ,उन्हें युध्ह क्षेत्र में भेजती थी / यहा व्रत उपवास का कोई जिक्र नही है/ भक्तिकाल में त्यौहार होते तो मीरा ने अवश्य अपने कृष्ण के लिए करवा चौथ का व्रत किया होता / उसी तरह तुलसीदास के रामचरित मानस में हनुमान को भेज संजीवनी बूटी मंगवाने की जगह उर्मिला व्रत,सावित्री पूजन ही लक्ष्मण का जीवन बचा लेता / इसके बाद रीतिकाल में नारी का वियोग -संयोग का वर्णन है/अतः त्यौहार कब आये और क्यों? इसका जिक्र नही मिलता है/ माना जाय तो अंग्रेजी शासन में महिलायों पर हुए अत्याचार के समय त्यौहार आये / जब सती प्रथा के नाम पर जलाने की स्थिति तीव्र हुयी होगी /////
तब पीड़ित महिलायों ने पुरुष के जीवन की कुशलता का व्रत रख अपने को बचाया / ताकि उसे उस पर तरस आये और वहअन्य पुरुष की प्रतारना से बच सके /यही भक्ति रूप परम्पराएँ बन गयी  और त्यौहार बनते गये ...बनते गये /यह अब तक समाज में विराजमान है/ क्यों ????? नारी को यह भ्रम तोड़ने में कई युग नही लग सकते ??????????????????????????????????????????

Comments

  1. bahut sateek baten likhi hain aapne .sarthak post .''BHARTIY NARI '' BLOG SE JUDEN V APNI AISI POST HAM SABHI KE SATH SAJHA KAREN .MY E.MAIL I.D. IS -shikhakaushik666@hotmail.com.

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NAREE BNEE AESE

                                 नारी     बनी      ऐसे                                                                                   आरम्भ में जब त्वष्टा नारी को बनाने लगा तो उसे पता चला क़ि पुरुष के निर्माण  में   वह सारी सामग्री समाप्त कर बैठा है और कोई स्थूल तत्व शेष नहीं रहे ,तो उसने बड़ी सोच विचार के बाद उन किया की चन्द्रमा की वर्तुलता को, लताओं की वक्रता को , प्रतानों के लचीलेपन को , घास की कम्पन को , सरकंडे की तनूता को , पुष्पों के यौवन को, पत्तों के हल्केपन को , हाथी के सूंड के नुकीलेपन को , मृग की भासों को , भवरों की पक्तियों के झुरमुटों को , सूर्य की किरणों की आनन्ददायक चाल को , बादलों की रिमझीम को , वायु की चंचलता को , खरगोश की भीरुता को , मोर के अभिमान को , तोंते के वक्छ की कोमलता को , बादाम की सख्ती को, शहद की मिठास को , सिंह की निर्दयता को , अग्नि की लपट की गरमाई को , बर्फ की शीतलता को , कोयल की कूक को , क्रेन की दिखावट को , चकवाक की निष्ठा को लेकर ,और सबको मिलाकर उसने नारी अर्थात औरत को बनाया !                                                              तस्लीम आरज़ू