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नगर परिषद के भावी प्रत्याशी हो गए है लापता ? कहते थे हर समय मौजूद ,अब उनका पता ना ठिकाना

नगरीय चुनाव के समय अपने को सुयोग्य,कर्मठ ,संघर्षशील कहने वाले प्रत्याशी गायब हो चुके है। ठीक उसी तरह जिस तरह बरसात में मेढ़क जमीन पर जगह -जगह दिखाई पड़ते है। अपने को सुयोग्य कहने वाले सभी उम्मीदवार नगर से ग़ुम हो चुके है। इनका कहीं अता पता नहीं है। जनता अब कहने लगी है कि मान गए, इन नेताओ की चिकनी चुपड़ी बात। चुनाव में तो लगता है कि वो सच्चे और बहुत ही बड़े समाजसेवी है। हैण्डबिल देखे तो लगेगा कि उनसे बड़ा कोई है ही नहीं जो नगर के लोगो का भला कर सके। चुनाव रद्द होते ही नगर चुनाव में उतरे सभी उम्मीदवार लापता हो गए है। ना नगर की समस्याओ को बेहतर बनाने की फ़िक्र है और ना ही कोई योजना बनाने की चिंता ! अक्सर देखने में आया है कि सभी प्रत्याशी अपने आप को लिखते है -सुयोग्य ,कर्मठ ,संघर्षशील और शिक्षित ,यह केवल ठगने वाला भाषा है। लोगो को छलने का लुभावाना शब्द। नगर की जनता उन सभी प्रत्याशिओं को ढूंढ रही है,जो मैदान में थे। कहीं तो नज़र आ जाये,राशन कार्ड और वोटर लिस्ट से बाहर हुए लोग परेशान है। इनकी खोज खबर करने वाला कहीं नज़र नहीं आ रहा है। लोगो में यह भी चर्चा आम होने लगी है कि आगे आएंगे की नहीं मैदान में जूतों की माला तैयार है इनके स्वागत के लिए !!!!

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AAKHIR NAARI HI KIYO..................................

आखिर नारी ही क्यों .....................करे त्यौहार ?                                                                      आलेख: मोहम्मद तस्लीम उल हक    यू तो पूरा साल त्योहारों से भरा है / तीन सौ पैसठ दिनों में हम इतने ही त्यौहार  हम मनाते भी हैं / अर्थात हर दिन एक त्यौहार और एक उत्सव / देखा जाय तो इनसे विशेषकर महिलाएं ही जुडी है/ सावन के आते ही पुरे कार्तिक माह तक उत्सवों की श्रृंखला शुरू हो जाता है/   त्योहारों का श्रृंखला:-तीज, नाग पंचमी ,भैया पंचमी, रक्षा बंधन, कृष्ण अष्टमी , राधा अष्टमी,नवरात्र, करवा चौथ , अहोई , अष्टमी,दीपावली,यम  द्वितीया,भैया दूज ,अनंत चतुर्दसी,गणेश चतुर्थी,संकट चतुर्थी,आदि कई त्यौहार है/   इन त्योहारों को केवल महिलाये ,भाईओं,पति,और पुत्रो के लिए मनाती आ रही है/ हथेली पर चावल के दाने ,थाली में मिटटी के गणेश, पकवान के साथ पूजा कर चन्द्र दर्शन कर एक राजा और रानी की कहानी सुन व्रत का तर्पण कर ही सुहागिन महिलाये मुह जुठ्लाती है/ ये परम्पराएँ न जाने कितनी ही पीडियों से चली आ रही है/     क्या ये अश्मिता का सवाल है:-    नारी अपनी अश्मिता के प्रश्नों को ले आज समाज के

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