नगरीय चुनाव के समय अपने को सुयोग्य,कर्मठ ,संघर्षशील कहने वाले प्रत्याशी
गायब हो चुके है। ठीक उसी तरह जिस तरह बरसात में मेढ़क जमीन पर जगह -जगह दिखाई पड़ते है।
अपने को सुयोग्य कहने वाले सभी उम्मीदवार नगर से ग़ुम हो चुके है। इनका कहीं अता पता नहीं है।
जनता अब कहने लगी है कि मान गए, इन नेताओ की चिकनी चुपड़ी बात। चुनाव में तो लगता है कि
वो सच्चे और बहुत ही बड़े समाजसेवी है। हैण्डबिल देखे तो लगेगा कि उनसे बड़ा कोई है ही नहीं जो नगर
के लोगो का भला कर सके। चुनाव रद्द होते ही नगर चुनाव में उतरे सभी उम्मीदवार लापता हो गए है।
ना नगर की समस्याओ को बेहतर बनाने की फ़िक्र है और ना ही कोई योजना बनाने की चिंता !
अक्सर देखने में आया है कि सभी प्रत्याशी अपने आप को लिखते है -सुयोग्य ,कर्मठ ,संघर्षशील और
शिक्षित ,यह केवल ठगने वाला भाषा है। लोगो को छलने का लुभावाना शब्द।
नगर की जनता उन सभी प्रत्याशिओं को ढूंढ रही है,जो मैदान में थे। कहीं तो नज़र आ जाये,राशन कार्ड और वोटर लिस्ट से
बाहर हुए लोग परेशान है। इनकी खोज खबर करने वाला कहीं नज़र नहीं आ रहा है। लोगो में यह भी चर्चा आम होने लगी है
कि आगे आएंगे की नहीं मैदान में जूतों की माला तैयार है इनके स्वागत के लिए !!!!
नारी बनी ऐसे आरम्भ में जब त्वष्टा नारी को बनाने लगा तो उसे पता चला क़ि पुरुष के निर्माण में वह सारी सामग्री समाप्त कर बैठा है और कोई स्थूल तत्व शेष नहीं रहे ,तो उसने बड़ी सोच विचार के बाद उन किया की चन्द्रमा की वर्तुलता को, लताओं की वक्रता को , प्रतानों के लचीलेपन को , घास की कम्पन को , सरकंडे की तनूता को , पुष्पों के यौवन को, पत्तों के हल्केपन को , हाथी के सूंड के नुकीलेपन को , मृग की भासों को , भवरों की पक्तियों के झुरमुटों को , सूर्य की किरणों की आनन्ददायक चाल को , बादलों की रिमझीम को , वायु की चंचलता को , खरगोश की भीरुता को , मोर के अभिमान को , तोंते के वक्छ की कोमलता को , बादाम की सख्ती को, शहद की मिठास को , सिंह की निर्दयता को , अग्नि की लपट की गरमाई को , बर्फ की शीतलता को , कोयल की कूक को , क्रेन की दिखावट को , चकवाक की निष्ठा को लेकर ,और सबको मिलाकर उसने नारी अर्थात औरत को बनाया ! तस्लीम आरज़ू
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